उत्तर प्रभाववाद
जिस समय प्रभाववादी कला का प्रसार हो रहा था, उसी समय कुछ चित्रकार प्रभाववाद से असंतुष्ट होकर अभिव्यक्ति की नई शैलियों की खोज में लगे हुए थे। ऐसी स्थिति में नवप्रभाववादी शैली विन्दुवादी पद्धति द्वारा चित्रण का एक नया आयाम लेकर उपस्थित हुई, लेकिन वैज्ञानिक आविष्कारों पर नवप्रभाववादियों द्वारा अधिक बल दिये जाने से कला में यान्त्रिकता आ गई थी।
अतः कलाकार आत्मिक अनुभूति का प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हुआ। इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप चित्रकार सेजाॅन, वानगाॅग एवं गोंग्वा ने वैक्तिक विचारों के अनुसार कला को नया आयाम दिया, अतः वे उत्तर प्रभाववादी कहलाये।
उत्तर प्रभाववादी शैली के चित्रकार प्रभाववादी कला से इस कारण असंतुष्ट थे, कि उनमें वाह्य सौन्दर्य के चित्रण के अतिरिक्त मौलिक सृजन का आनन्द नहीं मिल पाता था, और वे अपनी व्यक्तिगत भावनाओं की अभिव्यक्ति नही कर पाते थे।
प्रभाववाद एवं उत्तरप्रभाववाद में मुख्य अन्तर यह था कि प्रभाववाद की प्रधान प्रेरणा दृश्य जगत का ऐन्द्रिय अनुभव था। जबकि उत्तरप्रभाववाद की मुख्य प्रेरणा आन्तरिक भावना एवं आन्तरिक भाव बोध था।
उत्तरप्र्रभाववादी कला की एक प्रमुख विशेषता विषयवस्तु जनित भावनाओं के अनुरूप रंगों का चयन करते हुए चित्रण करना एवं आन्तरिक अनुभूति को कला के माध्यम से प्रकट करना था।
फ्रैंच चित्रकारों की कला को रोजर फ्राय ने उत्तर प्रभाववाद का नाम दिया व क्लाइव वेल ने उसे इस नाम से प्रचारित-प्रसारित किया।
नोट:- वानगो की कला से अभिव्यंजनावाद को तथा गोंग्वा की कला से फाववाद को प्रेरणा मिली।