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सिविल सेवा में भ्रष्टाचार
चर्चा में क्यों?
👉दिसंबर 2022 में नीरज दत्ता बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने देश में लोक सेवकों के बीच भ्रष्टाचार पर नाराज़गी व्यक्त की और दोषी व्यक्तियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के लिए आवश्यक साक्ष्य की मात्रा के आधार को कम कर दिया।

क्या है निर्णय?
👉अपने फैसले के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने इस मिथक को खारिज कर दिया कि केवल अपराध का पूर्ण सबूत ही एक अपराधी को दोषी ठहराने में मदद कर सकता है।
👉अदालत ने अब निर्धारित किया है कि यदि अभियोजन पक्ष द्वारा सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को व्यवस्थित किया जाता है और अदालत के सामने पेश किया जाता है, इसके बाद भले ही अभियोजन पक्ष के गवाह बयान बदल लें  तो भी यह अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करता है।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई
👉भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के दो पहलू हैं: कानून की गंभीरता और उसका अनुप्रयोग; और जनमत की ताकत जो स्वच्छ सार्वजनिक जीवन के अभियान को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
👉सख्त दंड के संबंध में विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए मौत की सजा की मांग गलत दिशा में है। विधायिका इस तथ्य की अवहेलना करती हैं कि आप आपराधिक व्यवहार के लिए दंड को जितना अधिक बढ़ाते हैं, अदालतों द्वारा उनके सामने पेश किए गए लोगों के अपराध के प्रति आश्वस्त होने के लिए आवश्यक सबूत की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
👉वास्तव में, सर्वोच्च न्यायालय ने 'संभाव्यता की प्रधानता' (preponderance of probability) का मानक निर्धारित किया है, एक ऐसा मानदंड जो आमतौर पर आपराधिक मुकदमों में सजा बनाए रखने के लिए स्वीकार्य नहीं है। पहले यह माना जाता था कि केवल निर्णायक प्रमाण अर्थात् ऐसा प्रमाण जो मन में रत्ती भर भी संदेह न छोड़े न्यायालयों की आवश्यकता थी।  इसे अब कमजोर कर दिया गया है।
👉अदालत ने निर्देश दिया है कि शिकायतकर्ता की अनुपलब्धता जैसी दुर्बलताएं, या तो उसकी मृत्यु हो चुकी है या अन्यथा उसका पता नहीं लगाया जा सकता है, अभियोजन पक्ष की कहानी को स्वीकार करने के रास्ते में नहीं आनी चाहिए।
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